आज कैसे गीत
गाऊँ
कर रहा क्रन्दन
हृदय है
आज कैसे गीत गाऊँ
देख कर भी पतन जग का
आज कैसे गीत गाऊँ।।
हँस रहे यद्यपि यहाँ कुछ
पर रुदन का ही है मेला
रह रहे है कुछ है महल में
पर उटज में जगत खेला।।
जा रहे कुछ है गगन मग
कुछ उदर हित भार झेला
कर रहे कुछ है जुगाली
पुण्यचय को प्राप्त करके
पर नहीं है भाग्य मे
खाना किन्हीं को एक बेला।।
छोड़ कर अपवाद यह सब
हे सखे अब गीत गाऊँ
क्षुधा पीड़ित मनुज सम्मुख
आज कैसे गीत गाऊँ।।
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