नीति पथ
नीति पथ से जो विमुख है
कौन उनको शरण देगा
मोह निद्रा से ग्रसित को
कौन क्यों जागरण देगा।।
प्रश्न तब प्रतिकार क्या है
पाप से उद्धार क्या है
कौन विधि कल्याण सम्भव
शान्ति तोरण द्वार क्या है।।
असत पथ का त्याग करना
सत्य पथ स्वीकार करना
निष्कपट व्यवहार करना
है यही प्रतिकार करना।।
पाप घुन है क्रमिक क्षय है
आत्म दंशन विष वरण है
शुचि क्षमा मय धैर्य धारण
पाप मोचन आवरण है।।
कामना विष वेलि बोती
काम ही सन्त्रास उदभ्व
आत्म बल जब जागरित हो
है तभी कल्याण सम्भव।।
शान्ति सुख का है समीरन
अर्चना का हार है वह
उर समर्पित हो जहाँ पर
शान्ति तोरण द्वार है वह।।
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