आज करो दीपक की पूजा
करो आज इसका शृंगार
नेह पगी यह जलती बाती
हर लेगी उर का अँधियार
नृत्य रचाये इसकी थिरकन
उपजाये जीवन में प्यार
स्वर्ण सरीखी इसकी पुलकन
जगमग ज्योतित बंदनवार
तिमिर हरे दीपक की ज्योति
प्रतिबिंबित इससे विश्वास
विषम दशा की साथी संबल
जगमग करती प्रतिपल आस
श्वास-श्वास है जीवन दर्शन
पल-पल करता बात पते की
धनिक श्रमिक सभी पर समरस
बनता शोभा पूजा घर की
नमन दीप को बलिदानी को
न्योछावर इस पर त्योहार
मानधनी लघुतम दीपक को
नमन सभी का सौ-सौ बार
-सुरेंद्रनाथ मेहरोत्रा
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