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तीन मुक्तक
१
करम को पसारे नहीं हाथ मैंने
रहम की दुआ भी नहीं माँगता हूँ
गुनहगार हूँ मैं कसम मेरे आका
गुनाहों की अपनी सजा माँगता हूँ।।
२
है नयनों में इतनी जलधार, सैंकड़ों मरुधर बह जाएँगे
है अधरों में इतनी प्यास, सैंकड़ों सागर चुक जाएँगे
मत पूछो मेरे अरमानों की थाती में क्या है
कहते कहते युग बीत सेंकड़ों जाएँगे
३
जंगली विरवे में भी फूल खिलते है मगर
बेजार अपनी किस्मत से मुरझा भी नहीं पाते
अनचाहे खिलते रहते हैं मगर
अपनी चाहत से मुस्का भी नहीं पाते।।
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