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दीपावली महोत्सव
२००४

दिये जलाओ
संकलन

           कलाकार का गीत

Ñ1

इस सदन में मैं अकेला ही दीया हूँ- मत बुझाओॐ

जब मिलेगी रोशनी मुझसे मिलेगीॐ
पांव तो मेरे थकन ने छील डाले,
अब विचारों के सहारे चल रहा हूँ,
आँसुओं से जन्म दे–देकर हँसी को,
एक मंदिर के दीए–सा जल रहा हूँ,
मैं जहाँ धर दूँ कदम, वह राजपथ है- मत मिटाओॐ

पांव मेरे, देखकर दुनिया चलेगीॐ
बेबसी, मेरे अधर इतने न खोलो,
जो कि अपना मोल बतलाता फिरूँ मैं,
इस कदर नफ़रत न बरसाओ नयन से,
प्यार को हर गाँव दफ़नाता फिरूँ मैं,
एक अंगारा गरम मैं ही बचा हूँ- मत बुझाओॐ

जब जलेगी, आरती मुझसे जलेगीॐ
जी रहे हो जिस कला का नाम लेकर
कुछ पता भी है कि वह कैसे बची है
सभ्यता की जिस अटारी पर खड़े हो,
वह हमीं बदनाम लोगों ने रची है,
मैं बहारों का अकेला वंशधर हूँ- मत सुखाओॐ

मैं खिलूंगा तब नयी बगिया खिलेगीॐ
शाम ने सबके मुखों पर रात मल दी,
मैं जला हूँ, तो सुबह लाकर बुझूंगा,
ज़िंदगी सारी गुनाहों में बिताकर,
जब मरूँगा, देवता बनकर पुजूंगा,
आँसुओं को देखकर मेरी हँसी तुम– मत उड़ाओॐ

मैं न रोऊँ, तो शिला कैसे गलेगीॐ
इस सदन में मैं अकेला ही दीया हूँ,

—रामावतार त्यागी

 

श्रद्धा की ज्योति

अपनी श्रद्धा की ज्योति को
आँचल में छिपा कर ले आना
तुम रात के इस अँधियारे में
एक दीप शिखा ले कर आना

पूजा की थाली में बिखरे
अक्षत के दानों की मानिंद
मेरे मन में पावनता की
सुधियाँ बिखेर कर तुम जाना

तुम रात के इस अँधियारे में
एक दीप शिखा ले कर आना

आस्थाओं के दीप जलें
और अंतर्मन आलोकित हो
इस बार प्रिये दीवाली में
प्रज्वलित प्राण तुम कर जाना

तुम रात के इस अँधियारे में
एक दीप शिखा ले कर आना

—अभिमन्यु सिंह

 

रात रात भर

रात रात भर जाग जाग कर
अँधियारे से लड़ा दीप
सारी सारी रात है

किंतु प्रातः के होते तुमने
उसकी जीवन ज्योति बुझा दी
कितनी कलुषित बात है
रक्षक ही भक्षक बन जाये
बहुत करूण यह बात है

रात रात भर जाग जाग कर
अँधियारे से लडा दीप
सारी सारी रात है

—एस एन मेहरोत्रा

   

 

 

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