अनुभूति में
श्रीकृष्ण माखीजा की
रचनाएँ—
अंजुमन में-
ऐसा क्यों
ज़िन्दग़ी के फासले
ज़िन्दग़ी ख्वाब
जी रहा है आदमी
टावर पर प्रहार
कल क्या हो
ज़िन्दग़ी नाच रही
गीतों में-
क्या बताऊँ मैं तुम्हें
जिन्दगी एक जुआ
ज़िन्दग़ी के ग़म
हसीन राहों में
संकलन में—
ज्योति पर्व–
दो दीप
दिये जलाओ–
आज खुशी से
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ज़िन्दगी नाच रही
ज़िन्दगी नाच रही है ये कहीं सच तो नहीं
ये ख़ुशी गा जो रही है वो कहीं सच तो नहीं
हमने इक बात कही थी कभी दिल की उनसे
वो तो उसने भी सुनी थी ये कहीं सच तो नहीं
चाँद का ख्वाब तो देखा था कभी हमने भी
रात मुस्का जो रही है ये कहीं सच तो नहीं
राह जो ढूँढ रहे थे कभी हम शामो सहर
आज वो पास खड़ी है ये कहीं सच तो नहीं
१६ अप्रैल २००४ |