अनुभूति में
श्रीकृष्ण माखीजा की
रचनाएँ—
अंजुमन में-
ऐसा क्यों
ज़िन्दग़ी के फासले
ज़िन्दग़ी ख्वाब
जी रहा है आदमी
टावर पर प्रहार
कल क्या हो
ज़िन्दग़ी नाच रही
गीतों में-
क्या बताऊँ मैं तुम्हें
जिन्दगी एक जुआ
ज़िन्दग़ी के ग़म
हसीन राहों में
संकलन में—
ज्योति पर्व–
दो दीप
दिये जलाओ–
आज खुशी से
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ज़िन्दगी के ग़म
ज़िन्दगी के ग़म भुलाने के लिये
आँसुओं को मुस्कराना चाहिये
प्यार का वो गीत गाने के लिये
धड़कनों को गुनगुनाना चाहिये
आग से निकला जो सोना वो खरा कहलाएगा
कूद कर सागर में उतरा वो ही मोती पाएगा
आदमी को आजमाने के लिये
ज़िन्दगी से खुद गुजरना चाहिये
आस्माँ कहने लगा तुम खेलो मेरी गोद में
उड़ चला पंछी अकेला हमसफर की खोज में
चाँद सी मन्ज़िल को पाने के लिये
रास्ता खुद ही बनाना चाहिये
क्या कहे अपनी कहानी एक ये बुझता दिया
है किसे फुरसत कहाँ जो साथ दे इसका भला
जल रहा नाता निभाने प्यार इसने भी किया
आरज़ू को फिर जगाने के लिये
हसरतों का कुछ बहाना चाहिये
२४ दिसंबर २००३ |