अनुभूति में
श्रीकृष्ण माखीजा की
रचनाएँ—
अंजुमन में-
ऐसा क्यों
ज़िन्दग़ी के फासले
ज़िन्दग़ी ख्वाब
जी रहा है आदमी
टावर पर प्रहार
कल क्या हो
ज़िन्दग़ी नाच रही
गीतों में-
क्या बताऊँ मैं तुम्हें
जिन्दगी एक जुआ
ज़िन्दग़ी के ग़म
हसीन राहों में
संकलन में—
ज्योति पर्व–
दो दीप
दिये जलाओ–
आज खुशी से
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टावर पर प्रहार
ज़िन्दगी के फैसले किसने लिखे
जिसके जितने दिन थे वो उसने लिखे
ग़म का शिकवा क्या करे उससे कोई
आँसुओं के सिलसिले जिसने लिखे
बादबाँ की इक लहर सब खा गई
रेत पर जो नाम थे हमने लिखे
कब कहाँ पहुँचेंगे उनको या नहीं
खत कभी अपनों को जो तुमने लिखे
आसमाँ भी देखकर है रो पड़ा
ये नहीं जो काम थे मैंने लिखे
दम घुटा जाता है बस ये सोचकर
इस तरह के खेल कोई क्यों लिखे
इन्तिहा इस रात की होगी कभी
ख्वाब खुशियों के हैं कुछ सबने लिखे
१६ अप्रैल २००४ |