अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

ज्योति पर्व
संकलन

दो दीप

आस और विश्वास के
दो दीप हैं हमने जलाए
लो अँधेरी रात जाए
वो नई एक सुबह आए

पंख टूटे हैं मगर
कुछ जोश फिर भी कम नहीं
उड़ न पाए हम तो क्या
चलने का हमको ग़म नहीं
रोक ले राहें हमारी
वो कोई मौसम नहीं
हिम्मतें देखो कि मंज़िल
आज खुद ही पास आए

ज़िंदगी़ के बागबाँ
हम इस ज़मीं को सींचते हैं
प्यार काँटों से भी है
हम फूल संग भी खेलते हैं
आएँ जो तूफ़ान लाखों
हम खुशी से झेलते हैं
नाव थी मँझधार में
अब लो किनारे पास आए

हाथ छूने को उठे तो
झुक गया है आसमाँ भी
चाँद तारों से सजाया
हमने अपना आशियाँ भी
हर तरफ़ उठने लगा लो
ध्यान पूजा का धुआँ भी
शाम दीवाली की सुंदर
याद फिर भगवान आए

आस और विश्वास के
दो दीप हैं हमने जलाए
लो अँधेरी रात जाए
वो नई एक सुबह आए

-श्रीकृष्ण माखीजा

 

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter