अनुभूति में
श्रीकृष्ण माखीजा की
रचनाएँ—
अंजुमन में-
ऐसा क्यों
ज़िन्दग़ी के फासले
ज़िन्दग़ी ख्वाब
जी रहा है आदमी
टावर पर प्रहार
कल क्या हो
ज़िन्दग़ी नाच रही
गीतों में-
क्या बताऊँ मैं तुम्हें
जिन्दगी एक जुआ
ज़िन्दग़ी के ग़म
हसीन राहों में
संकलन में—
ज्योति पर्व–
दो दीप
दिये जलाओ–
आज खुशी से
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ज़िन्दगी के फ़ासले
ज़िन्दगी के फासले बढ़ते रहे अपनी जगह
मंज़िलें अपनी जगह ये रास्ते अपनी जगह
दिन गुजरते ही रहे रातों के साए ढल गए
वो सुबह अपनी जगह ये शाम भी अपनी जगह
जाम तो चलते रहे हम मयकदे से दूर थे
ये शमा अपनी जगह महफिल वही अपनी जगह
साँस की सरगम वही गाती रही इक रागिनी
ये ज़ुबाँ अपनी जगह नग़मे वही अपनी जगह
वो बहारें खो गयीं पतझड़ का मौसम आ गया
गुल सभी अपनी जगह कलियाँ वही अपनी जगह
हम तो बस सुनते रहे उनकी शिकायत रोज ही
ये गिले अपनी जगह शिकवे सभी अपनी जगह
ग़म सभी सहते रहे हम इक ख़ुशी के वास्ते
पर ये ख़ुशी अपनी जगह वो ग़म सभी अपनी जगह
धड़कनें बजने लगीं साँसें सिसकती रह गयीं
ज़िन्दगी अपनी जगह ये मौत भी अपनी जगह
१६ अप्रैल २००४ |