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अनुभूति में लावण्या शाह की
की रचनाएँ —

छंदमुक्त में-
कल
तुलसी के बिरवे के पास
प्राकृत मनुज हूँ
बीती रात का सपना

गीतों में-
जपाकुसुम का फूल
पल पल जीवन बीता जाए

संकलन में-
वसंती हवा–कोकिला
प्रेम गीत–प्रेम मूर्ति
वर्षा मंगल – अषाढ़ की रात
गांव में अलाव–जाड़े की दोपहर में
गुच्छे भर अमलतास–ग्रीष्म की एक रात
ज्योतिपर्व–दीप ज्योति नमोस्तुते
दिये जलाओ–प्रीत दीप
ज्योति पर्व
मौसम– खिड़की खोले, विजय प्रकृति श्री की
ममतामयी–अम्मा

 

तुलसी के बिरवे के पास

तुलसी के बिरवे के पास,
रखा एक जलता दिया
जल रहा जो अकम्पित, मंद मंद, नित नया
बिरवा जतन से उगा
जो तुलसी क्यारी मध्य सजीला
नैवैध्य जल से अभिसिक्त प्रतिदिन,
वह मैं हूँ
सांध्य छाया में सुरभित,
थमी थमी सी बाट
और घर तक आता
वह परिचित सा लघु पथ
जहाँ विश्राम लेते सभी परिंदे,
प्राणी, स्वजन
गृह में आराम पाते,
वह भी तो मैं ही हूँ न

पदचाप, शांत संयत,
निश्वास गहरा बिखरा हुआ
कैद रह गया आँगन में जो,
सब के चले जाने के बाद
हल्दी, नमक, धान के कण
जो सहेजता मौन हो कर
जो उलटता आँच पर,
पकाता रोटियों को, धान को
थपकी दिलाकर जो सुलाता
भोले अबोध शिशु को
प्यार से चूमता माथा, हथेली,
बारम्बार वो मैं हूँ
रसोई घर दुवारी पास पड़ौस
नाते रिश्तों का पुलिन्दा
जो बाँधती, पोसती प्रतिदिन वह,
बस मैं एक माँ हूँ !

१६ सितंबर २०१३

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