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कल
कल कल कल...करता,
बीत गया कल !
अब कल है, आनेवाला !
जीवन के निर्झर से झर, झर
झरना, रीत गया !
झर, झरना, रीत गया !
कल सा ही बीत गया !
सागर के स्वर से मर्र मर्र कर,
जब सपना टूट गया
-कोई अपना छूट गया !
कल सा ही बीत गया !
रवि के कण से,
निसृत, छन कर,
जब अंबर टूट गया !
घन अंबर रुठ गया !
री, कल सा टूट गया!
सरिता के जल से विकल, निकल,
कल कल स्वर रीस गया !
स्वर आगे निकल गया
कल सा ही बिखर गया !
१६ सितंबर २०१३
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