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अनुभूति में लावण्या शाह की
की रचनाएँ —

छंदमुक्त में-
कल
तुलसी के बिरवे के पास
प्राकृत मनुज हूँ
बीती रात का सपना

गीतों में-
जपाकुसुम का फूल
पल पल जीवन बीता जाए

संकलन में-
वसंती हवा–कोकिला
प्रेम गीत–प्रेम मूर्ति
वर्षा मंगल – अषाढ़ की रात
गांव में अलाव–जाड़े की दोपहर में
गुच्छे भर अमलतास–ग्रीष्म की एक रात
ज्योतिपर्व–दीप ज्योति नमोस्तुते
दिये जलाओ–प्रीत दीप
ज्योति पर्व
मौसम– खिड़की खोले, विजय प्रकृति श्री की
ममतामयी–अम्मा

 

प्राकृत मनुज हूँ

प्राकृत मनुज हूँ,
प्रकृति से जन्मा
तभी तो मुझे लुभाती है वसुंधरा
मैं हूँ अजन्मा, जन्मा या न जन्मा
यात्रा चिरंतन चल रही ना रुकी !

आऊँगा, जाऊँगा बार बार यों ही
जब तक है मन मयूर मेरा अटका
रहूँ अकेला? क्यों डेरे से भटका ?
प्रश्न मन को बींधते उत्तर खोजते!

लुभाते बरखा औ बादल सलोने
विहगों के टोलों के मन पे जादू टोने
है छुपता मेरा मन, बन के बिजुरिया
छिप घने को ताके जिसे भोली गुजरिया

बूँदें झिर झिर नभ से उतर झरेंगी
मिल नयन जल से वे पावन बनेंगीं
अश्रु नयन के भींज काजल ले घुलेंगीं
भोली बाला के गालों पे ढल बहेंगीं

बहा ले जायेगी नदिया जिन्हें उस पार
जहाँ बैठ बंसी बजाये कोई सुकुमार
प्यास बुझायेगा पी जब नदी का जल
मधु बूँद अंजुरी में भर कर वह पिएगा

प्रेम वारिधि समा जायेगी तृषा मिटेगी
प्राकृत मनुज की प्यास क्या तब बुझेगी ?

१६ सितंबर २०१३

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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