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बीती रात का सपना
बीती रात का सपना, छिपा ही रह जाये,
तो वो, सपना, सपना नहीं रहता है!
पायलिया के घूँघरू, ना बाजें तो,
फिर, पायल पायल कहाँ रहती है?
बिन पंखों की उडान आखिरी हद तक,
साँस रोक कर देखे वो दिवा- स्वप्न भी,
पल भर में लगाये पाँख, पखेरु से उड़,
ना जाने कब, हो जाते हैँ !
मन का क्या है? सारा आकाश कम है
भावों का उठना, हर लहर लहर पर,
शशि की तम पर पडती, आभा है!
रुपहली रातों में खिलतीं कलियाँ जो,
भाव विभोर, स्निग्धता लिये उर में,
कोमल किसलय के आलिंगन को,
रोक सहज निज प्रणयन उन्मन से
वीतराग उषा का लिये सजाती,
पल पल में, खिलतीं उपवन में!
मैं, मन के नयनोँ से उन्हें देखती,
राग अहीरों के सुनती, मधुवन में,
वन ज्योत्सना, मनोकामिनी बनी,
गहराते संवेदन, उर, प्रतिक्षण में!
सुर राग ताल लय के बंधन जो,
फैल रहे हैँ, चार याम, ज्योति कण से,
फिर उठा सुराही पात्र, पिलाये हाला,
कोई आकर, सूने जीवन पथ में!
यह अमृत धार बहे, रसधार, यों ही,
कहती में, यह जग जादू घर है !
रात दिवा के द्युती मण्डल की,
यह अक्षुण्ण अमित सीमा रेखा है
१६ सितंबर २०१३
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