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दीप शिखा की लौ कहती है,
व्यथा कथा हर घर रहती है!
कभी छुपी तो कभी मुखर हो
अश्रु-हास बन बन बहती है!
हाँ, व्यथा सखी, हर घर रहती है!
बिछुड़े स्वजन की याद कभी
निर्धन की लालसा ज्यों, थकी-थकी
हारी ममता की आँखों में नमी
बन कर, बह कर, चुप-सी रहती है!
हाँ व्यथा सखी, हर घर बहती है!
नत मस्तक, मैं दिवला बार नमूँ,
आरती माँ महा-लक्ष्मी, मैं तेरी करूँ,
आओ घर घर माँ, यही आज कहूँ,
दुखियों को सुख दो, यह बिनती करूँ,
माँ! देख दिया अब प्रज्वलित कर दूँ!
दीपावली आई फिर आँगन,
बन्दनवार रंगोली रची सुहावन!
किलकारी से गूँजा रे, प्रांगन
मिष्टान-अन्न-धृत-मेवा, मन भावन!
देख सखी यहाँ, फुलझड़ी मुस्कावन!
जीवन बीता जाता ऋतुओं के संग-संग,
हो सब को, दीपावली का अभिनंदन!
नए वर्ष की बधाई - हो, नित नव-रास!
-लावण्या शाह
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