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अनुभूति में अशोक गुप्ता की रचनाएँ-

नई कविताएँ—
अजन्मी
चीं भैया चीं
लंबी सड़क

कविताओं में—
उन दिनों
कैसे मैं समझाऊँ
झूठ
ग़लती मत करना
गुर्खा फ़ोर्ट की हाइक
दादाजी
नदी के प्रवाह मे
पत्थर
पागल भिखारी
भाग अमीना भाग
माँ 
रबर की चप्पल
रेलवे स्टेशन पर
रामला

रामला

वह एक फटी क़मीज़ पहने
झाड़ू, बर्तन, कपड़े करने
हर रोज़ आता।
मैंने उसे एक क़मीज़ दी
जो मैं पहनता नही था,
फिर एक,
फिर एक और,
पर वह फिर वही फटी क़मीज़ पहने
झाड़ू, बर्तन, कपड़े करने
हर रोज़ आता।
``क्यों?'' मैं पूछता।
हर बार उसका जवाब होता
``घर भेज दी
भाई के पास डूंगरपुर''
और वह फिर वही फटी कमीज़ पहने
झाड़ू, बर्तन, कपड़े करने
हर रोज़ आता।

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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