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अनुभूति में अशोक गुप्ता की रचनाएँ-

नई कविताएँ—
अजन्मी
चीं भैया चीं
लंबी सड़क

कविताओं में—
उन दिनों
कैसे मैं समझाऊँ
झूठ
ग़लती मत करना
गुर्खा फ़ोर्ट की हाइक
दादाजी
नदी के प्रवाह मे
पत्थर
पागल भिखारी
भाग अमीना भाग
माँ 
रबर की चप्पल
रेलवे स्टेशन पर
रामला

गुर्खा फोर्ट की हाइक

गुर्खा फोर्ट की हाइक पर,
जून की भकभकाती गर्मी में,
विक्टर और मैं।
नदी सूखकर
छोटे छोटे टुकड़ों में
सिकुड़ गई थी।
पानी में गोल पत्थरों पर
धूप चमक रही थी।
छोटी छोटी गुलाबी मछलियाँ
अपने नन्हे मुँहों में पानी
निगलते हुए दौड़ रहीं थीं,
इधर उधर, लाचार और भूखी।
वे काँटे की ओर भागीं,
काला, नुकीला काँटा
उनके आतुर खुले मुँह
को साफ चीर गया।
यह आसान था, बहुत आसान,
हमने कितनी ही पकड़ीं
और उन्हें फेंक दिया,
स्कूल लौटने के रास्ते पर।

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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