कैसे मै समझाऊँ
क्या नज़दीकी या
दूरी का
प्रिये है अपना यह नाता
कैसे मै समझाऊँ तुमको
मैं खुद समझ नही पाता
तुम सरहद के पार
बसी हो
मैं हिन्दुस्तानी कहलाता
देश विदेश के बीच की सीमा
मैं खुद समझ नही पाता
तुमको हो गर ईद
मुबारक
दीवाली दिन मुझको भाता
धर्म धर्म में भेद है कैसा
मैं खुद समझ नही पाता
बदली किसकी नदिया
किसकी
क्या पर्वत बांटा जाता
इनसानों का खून बहे क्यों
मैं खुद समझ नही पाता
क्या नज़दीकी या
दूरी का
प्रिये है अपना यह नाता
कैसे मै समझाऊँ तुमको
मैं खुद समझ नही पाता
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