अनुभूति में
अशोक गुप्ता की रचनाएँ-
नई कविताएँ—
अजन्मी
चीं भैया चीं
लंबी सड़क
कविताओं में—
उन दिनों
कैसे मैं समझाऊँ
झूठ
ग़लती मत करना
गुर्खा फ़ोर्ट की हाइक
दादाजी
नदी के प्रवाह में
पत्थर
पागल भिखारी
भाग अमीना भाग
माँ
रबर की चप्पल
रेलवे स्टेशन पर
रामला
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भाग अमीना भाग
मरे हुए लोगों को कभी भी आराम नहीं
ख़ासकर रात को
कभी मैं ऊपरी मंजिल पर उनको चलते सुनती हूँ
दरवाजों के कुंडे लगाते फर्नीचर खिसकाकर
दरवाजे पर बैरिकेड बनाते
मैं सो नही पाती हूँ
कभी कभी गहरी खामोशी होती है
नारंगी रंग की सन्नाहट
सिर्फ़ चरमराहट की आवाज
और जलने की बदबू
एकाएक वे चिल्लाने लगते हैं
''भाग अमीना भाग''
मैं उनको समझाती हूँ
कि भीड़ कई सालों पहले चली गई
मुझे अब दर्द भी नहीं होता
और वे मर चुके हैं
पर वे चीखते जाते हैं
''वो आ रहे हैं
भाग अमीना भाग''
४ फ़रवरी २००८ |