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माँ
सड़क की रोशनी
माँ और मेरे दूर गाँव की
यादों का धुँधलाते खालीपन
भर रही है।
तेज़ बुखार में तपती
मैं बेहोशी में बड़बडा रही हूँ ।
मां पिछवाड़े से मिर्ची और कुछ केले
तोड़ लाती है।
बाज़ार से लौटती है
कुछ रुपए लेकर,
जो वैद्य के लायक भी नहीं।
बत्तियाँ बुझने पर
झींगुर का स्वर
और हमारी सिसकियों का सन्नाटा।
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