अनुभूति में अशोक गुप्ता की रचनाएँ-
नई कविताएँ— अजन्मी चीं भैया चीं लंबी सड़क
कविताओं में— उन दिनों कैसे मैं समझाऊँ झूठ ग़लती मत करना गुर्खा फ़ोर्ट की हाइक दादाजी नदी के प्रवाह में पत्थर पागल भिखारी भाग अमीना भाग माँ रबर की चप्पल रेलवे स्टेशन पर रामला
रबर की चप्पल मैं उनको स्कूल जाते देखता घिसे पुराने कपड़ों में, कुछ रबर की चप्पल पहने, कुछ नंगे पैर। और मैं अपने आप से कहता, "एक दिन जब मैं बड़ा होऊँगा तो एक ट्रक भर चप्पल ख़रीदकर उनके सामने ढेर लगा दूँगा।"
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