अनुभूति में अशोक गुप्ता की रचनाएँ-
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अजन्मी
सर्दी की एक दोपहर को, बदली की छाँव-सी तुम आती हो।
धुँधलाते हुए सपने की तरह, यादाश्त के हाथों से फिसलती प्रेम अनुभूति की तरह,
और मेरे छू सकने से कहीं पहले ही तुम गायब हो जाती हो, मेरी अजन्मी कविता।
३० जून २००८
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