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अनुभूति में अशोक गुप्ता की रचनाएँ-

नई कविताएँ—
अजन्मी
चीं भैया चीं
लंबी सड़क

कविताओं में—
उन दिनों
कैसे मैं समझाऊँ
झूठ
ग़लती मत करना
गुर्खा फ़ोर्ट की हाइक
दादाजी
नदी के प्रवाह मे
पत्थर
पागल भिखारी
भाग अमीना भाग
माँ 
रबर की चप्पल
रेलवे स्टेशन पर
रामला

पत्थर

वो पत्थर जो हमने
राह चलते बाग से, धरती से, उठाए,
जिन्हें हमने चुना,
आपस में मिलाया, बदला,
चमकाया, और सम्हाला
वे अलग अलग रंग, शक्ल,
छुअन और सपनों के थे।

जिन रत्नों के खज़ानों को
हमारी बोझिल जेबों ने ढोया,
माँ की डाँट के बावजूद,

वे सब समा गए
टाउन सेन्टर के कंकरीट में।
और जहाँ हम चपटेवालों को
सात, आठ, ग्यारह, टिप्पे खिलाते
तालाब में फेंकते थे,
वहाँ है एक विशालकाय
काँच और एल्युमिनियम का
सिटीप्लाज़ा,
शहर का सबसे ऊँचा प्रतीक

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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