अनुभूति में
शीतल श्रीवस्तव की रचनाएँ
छंदमुक्त में-
एहसास
कल्पना
कैसे कह दूँ
जी हाँ मैं कवि हूँ
बहस
बहुत हो चुका
गीत लिख कर
पर इतना कैसे
प्रगति
पुलिस और रामधनिया
सहजता
संकलन में
ज्योति पर्व -
दीपकों की लौ
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जी हाँ मै कवि
हूँ
जी हाँ मै कवि हूँ
कविता करता हूँ
मै इधर उधर घूमता हूँ
रंग महलों मे झोपडियों मे
भीड मे सुन सान मे
देखता हूँ
सभी जगह व्याप्त है
एक सनक एक ललक
कुछ पाने की चाह में
सभी त्रस्त हैं
इसी लिए मै लिखता हूँ
जी हाँ मै कवि हूँ
कविता करता हूँ
कुछ कहते हैं यही अच्छा है
कुछ कहते हैं यही खराब है
कुछ अच्छे खराब के परिवेष से
दूर भाग जाने की दौड मे
एक दूसरे की टांग खीच रहे हैं
उन्हे नहीं मालूम
सभी अच्छा है सभी खराब है
जो उनको अच्छा है
वही इनको खराब है
जो उनको खराब है
वही इनको अच्छा है
इसी लिए मै हंसता हूँै
जी हाँ मै कवि हूँ
कविता करता हूँ
चेतन अचेतन प्रकृति पुरूष
व्यष्टि समष्टि के सम्बन्ध को
मूर्त रूप देना ही
व्यक्ति की अभिव्यक्ति है
स्व मे आत्मं की छटपटाहट
सृष्टि के नियमों के पार हो जाना चाहती है
इसी लिये मै नियमो को लांघ कर
नए नियम रचता हूँ
जी हाँ मै कवि हूँ
कविता करता हूँ।
१ दिसंबर २००१ |