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एहसास
फिर वही महीना,
फिर वही मौसम
आँखों में उतरने लगा
यादों की दिल्लगी,
एहसासों का समुन्दर
हौले से साँसों में मचलने लगा
वे सूखे पत्ते,
वह पीपल की छाँव
दुपहरिया मे सुस्ताता ओसारे में गाँव
वह इमली,
वह बरगद वह बगीचे का पड़ाव
वह दादी की कहानी,
वह दुपहरिया मे सियार का विवाह
वह गेहूँ का कटना
वह रात का खलिहान
वह मन्दिर की घण्टी
वह मस्जिद का अजान
फिर वही उलझन,
फिर वही सवाल
एक बारगी फिर घाव करने लगा
फिर वही महीना,
फिर वही मौसम
आँखों में उतरने लगा।
१ दिसंबर २००१ |