अनुभूति में
शीतल श्रीवस्तव की रचनाएँ
छंदमुक्त में-
एहसास
कल्पना
कैसे कह दूँ
जी हाँ मैं कवि हूँ
बहस
बहुत हो चुका
गीत लिख कर
पर इतना कैसे
प्रगति
पुलिस और रामधनिया
सहजता
संकलन में
ज्योति पर्व -
दीपकों की लौ
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गीत लिख कर
गीत लिख कर फिर
अकेले मे बैठ गुन गुनाऊँगा
थक कर जब तुम ऊब चुके होगे
महफिलों से
हतोत्साहित हो चुके होगे
अपनी तलाश में
तुम्हारी आस्था को फिर से पनपाने
धीरे से बैठ कर अकेले में
तुम्हे एक गीत सुनाऊँगा
गीत जिसे तुम गा न सके
शब्द जिन्हें मुखरित कर न सके
तुम्हारे वे शब्द
जो तुम्हे व्याकुल किये रहते थे
तुमसे ही ले कर
धीरे से बैठ कर अकेले मे
तुम्हे सुनाऊँगा
महशस कर सकोगे
शब्दों के स्पन्दन को
अपने ही अन्दर
मानो अनजाने मे तुमने
खुद ही ये गीत गाये थे
मेरे गीत तुम्हारे ही तो हैं
तुम्हारा तुमको सौंप कर
धीरे से बैठ कर अकेले में
फिर एक गीत गुनगुनऊँगा
१ दिसंबर २००१ |