पतझड़ में
बहारों की महक पतझड़
में बहारों की महक अब भी है बाकी
बीते हुए लम्हों की कसक अब भी है बाकी
दर्पण कभी देखा तो ये अहसास
भी जागा
इक ख़्वाब की आँखों में झलक अब भी है बाकी
बस्ती से मेरी जा भी चुके
कबके फ़सादी
सन्नाटा मगर दूर तलक अब भी है बाकी
ए पंछी बचा रखना तू परवाज़ की
ख़्वाहिश
एक तेरी तमन्ना का फलक अब भी है बाकी
कहने को तो दिल राख का इक ढेर
बन गया
इसमें कहीं शोलों की धधक अब भी है बाकी
मौसम का फुंसूं ख़त्म हुआ शाम
से 'नर्गिस'
आँखों में तो अश्कों की धनक अब भी है बाकी
१ दिसंबर २००५
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