आँगन की धूप
आँगन की धूप नींव का पत्थर चला
गया
वो क्या गया के साथ मेरा घर चला गया
कितने ग़ज़ब की प्यास लिए फिर
रहा था वो
जो उसके पीछे-पीछे समंदर चला गया
फिर उसके नाम कर दिया सरकार
ने नगर
दुनिया से बदनसीब जो बेघर चला गया
पूछा पता किसी ने तो हमको
ख़बर हुई
बरसों कोई पड़ौस में रहकर चला गया
दिल पारा-पारा होके गया जाने
कब बिखर
इस तरहा- कोई आँख मिलाकर चला गया
सूरत से वास्ता यहाँ फ़ितरत
को क्या भला
बुत बर्फ़ का था आग लगाकर चला गया
'नर्गिस' न खुद मुझे ही ख़बर
हो सकी कभी
वो शख़्सियत को मेरी मिटाकर चला गया
१ दिसंबर २००५
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