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अनुभूति में बृजेश नीरज की रचनाएँ-

नयी रचनाओं में-
ढलती साँझ
निहितार्थ समझने होंगे
मुट्ठी की ताकत
वे लोग
सब खामोश हैं

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कुछ अकिंचन शब्द हैं बस
ढूँढती नीड़ अपना
मछली सोच विचार कर रही
सो गए सन्दर्भ तो सब मुँह अँधेरे
स्वप्न की टूटी सिलन
हाकिम निवाले देंगे

छंदमुक्त में-
क्रंदन
कुएँ का मेंढक
गर्मी
दीवार
शब्द

 

मुट्ठी की ताकत

जानता हूँ कि
मैं, मैं हूँ
तुम, तुम हो
लेकिन तुम भी यह समझ लो कि
मैं कोई खाली हो चुकी शराब की बोतल नहीं
जिसे तुम धीरे से
खिड़की से बाहर फेंक दोगे
नहीं, कतई नहीं
मैं हर बार दीवार से टकराकर
वापस पहुँच जाऊँगा
ठीक तुम्हारी आँखों के सामने

मैं पीकर फेंकी गयी सिगरेट का टुकड़ा भी नहीं
जिसे मसल दोगे
अपने पैरों तले

मैं आज तक जान नहीं पाया
राजा भोज और गंगू तेली में फर्क
हैं तो दोनों इंसान ही
पूँजी
इंसान होने का हक तो नहीं छीन सकती
मैं सिर्फ इंसान होने का हक चाहता हूँ
लेकिन तुम्हें यह स्वीकार्य नहीं

नहीं! ऐसा नहीं चलेगा
मैं सीख रहा हूँ
तुम्हारी तिजोरियों में बंद
अपनी किस्मत के ताले तोड़ना

हवा में लहराती
मुट्ठी की ताकत पहचानो!

१ दिसंबर २०१६

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