अनुभूति में
बृजेश नीरज
की रचनाएँ-
गीतों में-
कुछ अकिंचन शब्द हैं बस
ढूँढती नीड़ अपना
मछली सोच विचार कर रही
सो गए सन्दर्भ तो सब मुँह अँधेरे
स्वप्न की टूटी सिलन
हाकिम निवाले देंगे
छंदमुक्त में-
क्रंदन
कुएँ का मेंढक
गर्मी
दीवार
शब्द
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शब्द
शब्द खामोश हैं
उनके अंदर गूँज रही है
पक्षियों की फड़फड़ाहट
आँतों का खालीपन।
चीथड़ों से झाँकते
शब्द बेचैन हैं।
रस, अलंकार तकते हैं
मुँह उनका
छलकने को।
हवायें चक्कर लगा रही हैं
चारों ओर।
लेकिन शब्द हैं कि
बोलते नहीं।
उन्हें इंतजार है कवि का
उठाए कलम
लिख दे उन्हें
फटे कागज के टुकड़े पर
और वे चीख पड़ें।
पर वह कवि
मजबूर है
काट दिए गए हैं
उसके हाथ
शाहजहाँ द्वारा।
८ जुलाई २०१३
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