अनुभूति में
बृजेश नीरज
की रचनाएँ-
गीतों में-
कुछ अकिंचन शब्द हैं बस
ढूँढती नीड़ अपना
मछली सोच विचार कर रही
सो गए सन्दर्भ तो सब मुँह अँधेरे
स्वप्न की टूटी सिलन
हाकिम निवाले देंगे
छंदमुक्त में-
क्रंदन
कुएँ का मेंढक
गर्मी
दीवार
शब्द
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क्रंदन
बच्चा रो रहा है
निःशब्द हवा में तैर रहा है
क्रंदन।
चाँदनी
आँगन में उतर आयी
तमाशा देखने।
कनस्तर
मुँह बाए पड़ा है
कोने में,
बटुली बुदबुदा कर
चुप हो गयी।
चूल्हा बार बार
एक ही बात पूछता है
कौन है वो
जो खा गया
इसके हिस्से की रोटी?
पूरा गाँव खामोश है।
पीपल पात
अफसोस में सिर हिला रहे हैं।
८ जुलाई २०१३
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