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अनुभूति में बृजेश नीरज की रचनाएँ-

गीतों में-
कुछ अकिंचन शब्द हैं बस
ढूँढती नीड़ अपना
मछली सोच विचार कर रही
सो गए सन्दर्भ तो सब मुँह अँधेरे
स्वप्न की टूटी सिलन
हाकिम निवाले देंगे

छंदमुक्त में-
क्रंदन
कुएँ का मेंढक
गर्मी
दीवार
शब्द

 

स्वप्न की टूटी सिलन

पात झुलसा है दिवस भर
रात भर सुलगी पवन
टीसते पल-छिन विरह में
मावसी होती किरन

भाव के व्याकुल चितेरे
यूँ सजाते अल्पना
रूप की मादक छुअन से
है किलकती कल्पना

आहटों के दर्प बोझिल
स्वप्न की टूटी सिलन

हलचलों में अर्थ ढूँढें
थम गईं पगडंडियाँ
शब्द आवारा भटकते
बुन रहे हैं किरचियाँ

ढल रही इस साँझ के
बिम्ब देते हैं चुभन

१० नवंबर २०१४

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