अनुभूति में
बृजेश नीरज
की रचनाएँ-
गीतों में-
कुछ अकिंचन शब्द हैं बस
ढूँढती नीड़ अपना
मछली सोच विचार कर रही
सो गए सन्दर्भ तो सब मुँह अँधेरे
स्वप्न की टूटी सिलन
हाकिम निवाले देंगे
छंदमुक्त में-
क्रंदन
कुएँ का मेंढक
गर्मी
दीवार
शब्द
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दीवार
शहर के बड़े चैराहे पर
जो बड़ी दीवार है
उसके पास से गुजरते हुए
अक्सर मन होता है
लिख दूँ उस पर
‘लोकतंत्र’
लाल स्याही से।
एक बड़ा लाल चमकता हुआ
‘लोकतंत्र’
जो दूर से साफ चमके।
जब भी होता हूँ वहाँ
काँव काँव करता एक कौआ
आ बैठता है दीवार पर
मानो आह्वान करता हो
‘आँव, ‘आँव,
लिख दो इस दीवार पर
जग जाएँ पशु, पक्षी, लोग
ढूँढकर निकाली जा सके
फाइलों और योजनाओं के
बोझ तले दबी जनता’।
कभी कभी हाथ उठते भी हैं
लेकिन कायर दिमाग
अनुमति नहीं देता।
दिमाग याद करता है
जब एक कवि ने
कोशिश की थी पहले
‘लोकतंत्र’ लिखने की
इसी दीवार पर।
अभी लिख ही पाया था ‘ल’
कि मिटा दी गयी इबारत
पोत दी गयी दीवार
झक सफेद रंग से।
वह कवि
तब से गायब है।
८ जुलाई २०१३
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