वो तो जब भी ख़त लिखता है
वो तो जब भी ख़त
लिखता है
उल्फ़त ही उल्फ़त लिखता है
मौसम फूलों के
दामन पर,
खुशबू वाले ख़त लिखता है।
है कैसा दस्तूर
शहर का
हर कोई नफ़रत लिखता है।
बादल का ख़त
पढ़कर देखो,
छप्पर की हालत लिखता है
अख़बारों से डर
है लगता
हर पन्ना दहशत लिखता है
रास नहीं आता
आईना,
वो सबकी फिरतर लिखता है
मैं हरदम अपनी
तती पर
मिलने की हसरत लिखता है
उसकी किस्मत
किसने लिखी?
जो सबकी किस्मत लिखता है।
अपने अफ़सानों
में 'श्याम'
बस उसकी बाबत लिखता है।
२३ जून २००८
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