आस इक भी
आस इक भी अगर फली होती
ज़िंदगी तू बहुत भली होती
यों थिरकती, महकती क्या ये हवा
बगिया माली ने गर छली होती
माँग लेते तुझे सितारों से
उसके आगे अगर चली होती
स्नेह-भर जो हमें मिला होता
फिर न कोई कमी खली होती
लोग क्यों बदनसीब कहते तुझे
गर मिली यार की गली होती
सब तरफ़ मेरे बस खड़ा था तू
फिर न क्योंकर मैं मनचली होती
कौन झुकता यों तेरे आगे 'श्याम'
जो न तेरी उमर ढली होती
१० मार्च २००८ |