उसको अगर परखा नहीं होता
उसको अगर परखा
नहीं होता सखा
घर आपका टूटा नहीं होता नहीं सखा
मैंने तुझे देखा
नहीं होता सखा
फिर चाँद का धोखा नहीं होता सखा
हर रोज़ ही तो है
सफ़र करता मगर
सूरज कभी बूढ़ा नहीं होता सखा
इज़हार है इक
दोस्ताना प्यार तो
इसका कभी सौदा नहीं होता सखा
उगने की खातिर धूप भी है लाजमी
बरगद तले पौधा नहीं होता सखा
२३ जून २००८
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