अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

अनुभूति में श्यामसखा श्याम की रचनाएँ-

दोहों में-
मन (१६ दोहे)

नई ग़ज़लें-
उसको अगर परखा नहीं होता
क्या करता
जब मैं छोटा बच्चा था
गूँगे का बयान
दर्द तो जीने नहीं देता मुझे
दिल नहीं करता
हम जैसे यारों से यारी
तेरे शहर में
वो तो जब भी ख़त लिखता है

अंजुमन में-
आस इक भी
खुद से जुदाई
हैं अभी आए

 

हैं अभी आए

है अभी आए अभी कैसे चले जाएँगे लोग
हमसे नादानों को क्या और कैसे समझाएँगे लोग

है नई आवाज़ धुन भी है नई तुम ही कहो
उन पुराने गीतों को फिर किसलिए गाएँगे लोग

नम तो होंगी आँखें मेरे दुश्मनों की भी ज़रूर
जग-दिखावे को ही मातम करने जब आएँगे लोग

फेंकते हैं आज पत्थर जिस पे इक दिन देखना
उसका बुत चौराह पर खुद ही लगा जाएँगे लोग

हादसों को यों हवा देते ही रहना है बजा
देखकर धुआँ बुझाने आग को आएँगे लोग

हमको कुछ कहना पड़ा है आज मजबूरी में यों
डर था मेरी चुप से भी तो और घबराएँगे लोग

इतनी पैनी बातें मत कह अपनी ग़ज़लों में ऐ दोस्त
हो के ज़ख्मी देखना बल साँप-से खाएँगे लोग

कौन है अश्कों को सौदागर यहाँ पर दोस्तों
देखकर तुमको दुखी, दिल अपना बहलाएँगे लोग

है बड़ी बेढब रिवायत इस नगर की 'श्याम' जी
पहले देंगे ज़ख्म और फिर इनको सहलाएँगे लोग

१० मार्च २००८

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter