अनुभूति में
बसंत ठाकुर की रचनाएँ-
नई रचनाओं में-
अमन चाहिये
आते जाते
जबसे गिरी
है छत
दिखाई देता है
अंजुमन
में-
अब इस तरह
इंसानियत का पाठ
एहसास के पलों को
ऐ जिंदगी
ऐ खुदा बंदे को कुछ ऐसी
कातिलों को ये कैसी सजा
कोई छोटा न कोई
बड़ा आदमी
ख्वाब आता है
जाते हुए भी उसने
सुनामी से होता कहर
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अमन चाहिये
चाँद तारे न हमको गगन चाहिये
ऐ खुदा इस जहाँ में अमन चाहिये
साँस चलती रहे तू दे इतनी हवा
कब कहा तुझसे पूरा चमन चाहिये
चैन से जी सकें होके आज़ाद हम
आज खुशियों भरा ये वतन चाहिये
फूल खिलते रहें अब यहाँ हर तरफ
अब दिलों में न कोई जलन चाहिये
जब मरें हम यहाँ देश के ही लिए
तो तिरंगे सा हमको कफ़न चाहिये
३१ मार्च २०१४
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