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अनुभूति में बसंत ठाकुर की रचनाएँ-

नई रचनाओं में-
इंसानियत का पाठ
ऐ खुदा बंदे को कुछ ऐसी
कोई छोटा न कोई बड़ा आदमी
ख्वाब आता है
सुनामी से होता कहर

अंजुमन में-
अब इस तरह
एहसास के पलों को
ऐ जिंदगी
कातिलों को ये कैसी सजा
जाते हुए भी उसने

 

ख्वाब आता है

ख्वाब आता है तो पलकों पे ठहर जाता है
आँख खुलते ही हवाओं में बिखर जाता है

आदमी सीख ले फूलों से ही जीने का हुनर
खार के बीच में रह के जो संवर जाता है

खुदको औरो की नज़र में तू तमाशा न बना
वक्त कितना भी बुरा हो तो गुजर जाता है

तेरी जुल्फों की घनी छाओ में मिलता है सुकू
जो भी आता है तो पल भर को ठहर जाता है

ऐ खुदा तू ही बता किस पे भरोसा कर लूँ
वादा करके यहाँ हर शख्स मुकर जाता है

३० जनवरी २०१२

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