अनुभूति में
बसंत ठाकुर की रचनाएँ-
नई रचनाओं में-
इंसानियत का पाठ
ऐ खुदा बंदे को कुछ ऐसी
कोई छोटा न कोई
बड़ा आदमी
ख्वाब आता है
सुनामी से होता कहर
अंजुमन
में-
अब इस तरह
एहसास के पलों को
ऐ जिंदगी
कातिलों को ये कैसी सजा
जाते हुए भी उसने |
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जाते हुए भी उसने
जाते हुए भी
उसने यूँ बार बार देखा
जैसे चुभो रहा हो कोई शूल यार देखा
माँ रो पड़ी फफक के बच्चों की बेबसी पर
आँखों में रोटियों का जब इंतज़ार देखा
हैरां से रह गए वो ममता को देख माँ की
माँ के वजूद में जब परवर दीगार देखा
मासूम थे वो बच्चे गम खा के सो गए पर
लड़ने का मौत से जब उनमें खुमार देखा
करते गुलों की बातें वो भी ज़रा ये सुनलें
बिखरे हुए हैं उनके आँगन में खार देखा
४ जुलाई २०११
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