अनुभूति में
बसंत ठाकुर की रचनाएँ-
नई रचनाओं में-
इंसानियत का पाठ
ऐ खुदा बंदे को कुछ ऐसी
कोई छोटा न कोई
बड़ा आदमी
ख्वाब आता है
सुनामी से होता कहर
अंजुमन
में-
अब इस तरह
एहसास के पलों को
ऐ जिंदगी
कातिलों को ये कैसी सजा
जाते हुए भी उसने |
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अब इस तरह
अब इस तरह न खुदको मिटाने की बात कर
रहने दे यार अब न ज़माने की बात कर
लगता हरेक साँस पे मरने का डर मुझे
तू भी मुझे न छोड़कर जाने की बात कर
कल तक तुझे था मेरी हर इक बात पर यकीं
अब इस तरह न दिल को दुखाने की बात कर
इक उम्र हमने यूँ ही गुजारी है याद में
दुनिया नयी न अब तू बसाने की बात कर
मैं एक हसीन ख्वाब था कल तेरी आँख का
नज़रों से आज तू न गिराने की बात कर
४ जुलाई २०११
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