अनुभूति में
बसंत ठाकुर की रचनाएँ-
नई रचनाओं में-
इंसानियत का पाठ
ऐ खुदा बंदे को कुछ ऐसी
कोई छोटा न कोई
बड़ा आदमी
ख्वाब आता है
सुनामी से होता कहर
अंजुमन
में-
अब इस तरह
एहसास के पलों को
ऐ जिंदगी
कातिलों को ये कैसी सजा
जाते हुए भी उसने |
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कातिलों को ये कैसी सजा
कातिलों को ये
कैसी सजा दे गए
उम्र हो लंबी ऐसी दुआ दे गए
जल रहा है ये पूरा शहर आग में
यूँ वो चिंगारियों को हवा दे गए
किस तरह टूटा मेरा भरम दोस्तों
बेवफ़ा होके भी वो वफ़ा दे गए
आए तो थे वो मरहम लगाने मगर
दर्द फिर जाते जाते नया दे गए
दुश्मनी उसने कैसी निभाई ‘बसंत’
ज़ख्म दे के वो मुझको दवा दे गए
४ जुलाई २०११
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