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इंसानियत का पाठ
ऐ खुदा बंदे को कुछ ऐसी
कोई छोटा न कोई बड़ा आदमी
ख्वाब आता है
सुनामी से होता कहर

अंजुमन में-
अब इस तरह
एहसास के पलों को
ऐ जिंदगी
कातिलों को ये कैसी सजा
जाते हुए भी उसने

 

एहसास के पलों को

एहसास के पलों को बंधन बनाये रखना
जीवन में तुम स्वयं को चन्दन बनाये रखना

किरणों के जैसे तुम भी चमकोगे इस जहाँ में
पर आग में स्वयं को कुंदन बनाये रखना

शब्दों को सुर में ढाले गाते रहो हमेशा
कागज-कलम को अपना कंगन बनाये रखना

ये रेशमी-सी पलकें जानम न भीग जाएँ
नैनो का अपनी तू मुझको अंजन बनाये रखना

था कंस जिसने मारा गोकुल को था संवारा
उस को ही नन्द से तुम नंदन बनाये रखना

४ जुलाई २०११

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