अनुभूति में
बसंत ठाकुर की रचनाएँ-
नई रचनाओं में-
इंसानियत का पाठ
ऐ खुदा बंदे को कुछ ऐसी
कोई छोटा न कोई
बड़ा आदमी
ख्वाब आता है
सुनामी से होता कहर
अंजुमन
में-
अब इस तरह
एहसास के पलों को
ऐ जिंदगी
कातिलों को ये कैसी सजा
जाते हुए भी उसने |
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ऐ खुदा बंदे को कुछ ऐसी
ऐ खुदा बंदे को
कुछ ऐसी निशानी दीजिए
सोम रस बरसे जुबां ऐसी ज़ुबानी दीजिए
वक्त की आंधी जिसे न रोक पाए उम्र भर
बस कलम से लिख सकूँ ऐसी कहानी दीजिए
मर सकूँ गैरों की खातिर दर्द अपना भूल कर
कुछ गरीबों के लिए आँखों में पानी दीजिए
गम जदा लोगो को थोड़ी सी खुशी गर दे सकू
ऐ खुदा ग़ज़लों में मेरी वो रवानी दीजिए
में क्या मांगू अब खुदा से बस यही है इल्तजा
दिन भले दुःख से भरा रातें सुहानी दीजिए
३० जनवरी २०१२
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