अनुभूति में
बसंत ठाकुर की रचनाएँ-
नई रचनाओं में-
इंसानियत का पाठ
ऐ खुदा बंदे को कुछ ऐसी
कोई छोटा न कोई
बड़ा आदमी
ख्वाब आता है
सुनामी से होता कहर
अंजुमन
में-
अब इस तरह
एहसास के पलों को
ऐ जिंदगी
कातिलों को ये कैसी सजा
जाते हुए भी उसने |
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कोई
छोटा न कोई बड़ा आदमी
कोई छोटा न कोई
बड़ा आदमी
हाथ फैलाये फिर भी खड़ा आदमी
दिल में कुछ है जुबां पर है कुछ आज कल
है हकीकत में चिकना घड़ा आदमी
चैन से घर में हम जी सके इसलिए
रात दिन सरहदों पे लड़ा आदमी
इस गुलामी से हम सब भी आज़ाद हों
इसलिए तो वो फांसी चढा आदमी
माँ का आँचल उसे याद आया तभी
जब कभी मुश्किलों में पड़ा आदमी
३० जनवरी २०१२
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