अनुभूति में
बसंत शर्मा
की रचनाएँ-
मुक्तक में-
चार मुक्तक
अंजुमन में-
कचरा
कहीं भीग जाये न
बेटियाँ
सिखाया आपने
हमसे रहा जाता नहीं
संकलन में-
बेला के फूल-
बगिया में बेला
ममतामयी-
उद्धार माँ कर दीजिये
मातृभाषा के प्रति-
सितंबर चौदह
मेरा भारत-
हे राम तेरे देश में
शुभ दीपावली-
जगमग मने दिवाली
ं
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चार मुक्तक
मत करना
तुम प्यार का अपने कभी इजहार मत करना
यदि दिल तुम्हें दे दे कोई इंकार मत करना
होतीं बड़ी गहराइयाँ इस प्रेम-सागर में
तुम तैरना, तुम डूबना, पर पार मत करना
पत्थर
आँसू हैं ये बहुत कीमती, मत इनको तुम यों बहने दो
जो दीवारें हैं नफरत की, हर हाल में इनको ढहने दो
जोड़ो सारे कंकड़ पत्थर, घर गरीब का एक बना दो
मन्दिर-मस्जिद-छोड़ो-यारो,-भगवान-को-दिल-में
रहने दो
मेरा मीत
कभी वो हार देता है, कभी वो जीत देता है
सनम मेरा बड़ा नटखट, मगर वो प्रीत देता है
सदा मेरे लिये ही तो, बहाये प्रेम की गंगा
सहारा मुझको जीने का, मेरा वो मीत देता है
पूजा
पूजा जहाँ हो प्रेम की, मंदिर हमें वो चाहिये
रिश्ते जहाँ भगवान हों, अब घर हमें वो चाहिये
इस देश की खातिर लड़े, दिन रात जो मैदान में
आतंक दे जड़ से मिटा, लश्कर हमें वो चाहिये
१ मार्च २०१६
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