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अनुभूति में बसंत शर्मा की रचनाएँ-

मुक्तक में-
चार मुक्तक

अंजुमन में-
कचरा
कहीं भीग जाये न
बेटियाँ
सिखाया आपने
हमसे रहा जाता नहीं

संकलन में-
बेला के फूल- बगिया में बेला
ममतामयी- उद्धार माँ कर दीजिये
मातृभाषा के प्रति- सितंबर चौदह
मेरा भारत- हे राम तेरे देश में
शुभ दीपावली- जगमग मने दिवाली
 

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कचरा

यहाँ कचरा वहाँ कचरा, सताये जा रहा कचरा
गली कूचों मकानों में, सडक पर छा रहा कचरा

किसी ने फेंक दी रद्दी, पड़ी है इक फटी गद्दी
बुरा है हाल सबका ही, मुसीबत ला रहा कचरा

बुराई तो सभी करते, उठाने में मगर मरते
पता भी तो लगाओ तुम, कहाँ से आ रहा कचरा

अभी अभियान जारी है, लगे हैं सब सफाई में
न जाने आज किसकी ये, कमाई खा रहा कचरा

बनालो खाद कचरे से, तुम्हारे काम आयेगी
सजालो क्यारियाँ इससे, उन्हें तो भा रहा कचरा

नकल कर लो विदेशों की, पढ़ा दो पाठ सबको ये
मिलेगी अब सजा इसकी, अगर फिंकता रहा कचरा

सँवारो तुम धरोहर ये, बचा लो जिंदगी इनकी
नदी झीलों तलाबों को, सड़ाये जा रहा कचरा

चलो अब बात करलें हम, हटायेंगे इसे कैसे
भरा है कुछ दिलों में जो, घृणा फैला रहा कचरा

सियासत गन्दगी की अब, पनपती जा रही है जो
हमें ही साफ़ करना है, यहाँ जो आ रहा कचरा

१५ जनवरी २०१६

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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