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अनुभूति में बसंत शर्मा की रचनाएँ-

मुक्तक में-
चार मुक्तक

अंजुमन में-
कचरा
कहीं भीग जाये न
बेटियाँ
सिखाया आपने
हमसे रहा जाता नहीं

संकलन में-
बेला के फूल- बगिया में बेला
ममतामयी- उद्धार माँ कर दीजिये
मातृभाषा के प्रति- सितंबर चौदह
मेरा भारत- हे राम तेरे देश में
शुभ दीपावली- जगमग मने दिवाली
 

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हमसे रहा जाता नहीं

बेचैन मन अब हो रहा, हमसे रहा जाता नहीं
है दर्द इतना बढ़ गया, दिल आज सह पाता नहीं

कुछ डगमगाने सी लगी, है जिंदगी की नाव ये
लगता किनारा दूर अब, हमको नजर आता नहीं

आये कभी दुख सामने, हालत जरा पतली हुई
नजरें चुराते हैं सभी, जैसे कोई नाता नहीं

कुछ दूरियाँ सी बढ़ गयीं, इंसान से इंसान की
यों सामने से दौड़कर, अब मिल गले पाता नहीं

बूढ़े हुए माँ-बाप की, सेवा करे कोई न अब
बीमार हों घर में पड़े, कोई दवा लाता नहीं

पैसे कमाने में सभी, त्यौहार फीके हो गये
रंगोलियाँ दहलीज पर, कोई सजा पाता नहीं

चारों तरफ अब है मचा, बस शोरगुल ही शोरगुल
अब गीत कोई प्यार का, दिल से यहाँ गाता नहीं

१५ जनवरी २०१६ 

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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