कर क्षमा अपराध सब, उपकार
माँ कर दीजिये।
आ गए तेरी शरण उद्धार माँ कर दीजिये।
हो रही बोझिल धरा अब, पापियों के भार से
खड्ग लेकर हाथ में, संहार माँ कर दीजिये।
जा रहा छाता अन्धेरा, जगत में अज्ञान का
ज्ञान का दीपक जला, उजियार माँ कर दीजिये।
बस यहाँ खाने कमाने में सभी कुछ खो दिया
ज़िंदगी रसहीन है, रसदार माँ कर दीजिये।
हो हिमालय सा हृदय, करुणा भरी जिसमें रहे
प्रेम का, सद्भाव का, संचार माँ कर दीजिये।
प्रेम से मिलकर रहें सब, हों न झगड़े, नफ़रतें
अब हमारे स्वप्न सब साकार माँ कर दीजिये।
लाल चूनर हम चढ़ा, पूजा करें माँ आपकी
बस यही विनती करें, भव पार माँ कर दीजिये।
- बसंत शर्मा
१५ अक्तूबर २०१५ |