अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

जगमग जगमग मने दिवाली

   



 

रंगोली से द्वार सजे हों
प्रेम दीप चहुँ ओर जले हों
बीतें सारी रातें काली
जगमग जगमग मने दिवाली

लक्ष्मी माता घर घर आये
सबके घर में खुशियाँ लाये
सजी रहे पूजा की थाली
जगमग जगमग मने दिवाली

सबका सपना हो अब पूरा
काम न कोई रहे अधूरा
भारत में छाये खुशहाली
जगमग जगमग मने दिवाली

मिलजुल खूब पटाखे फोड़ें
भूले बिसरे रिश्ते जोड़ें
दिल का कोना रहे न खाली
जगमग जगमग मने दिवाली

- बसंत कुमार शर्मा
१ नवंबर २०१५

   

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter